‘‘किआरा आडवाणी के साथ मेरे दृश्यों को स्टीमी सीन
की बजाय टेंडर लव वाले दृश्य कहना ज्यादा ठीक
रहेगा..’’
-विक्की कौशल
2015 में फिल्म ‘मसान’के प्रदर्शन के साथ ही अभिनेता के तौर पर विक्की कौशल सूर्खियां में छा गए थे, जबकि
विक्की कौशल ने बालीवुड में अनुराग कश्यप के साथ फिल्म ‘‘गैंग्स आफ वासेपुर’ में बतौर सहायक निर्देशक काम करते
हुए कदम रखा था. बहरहाल, ‘मसान’ के बाद ‘रमन राघव 2.0’, ‘राजी’, ‘संजू’सहित कई फिल्मों में अपने अभिनय का
जलवा दिखाया.
2018 की सर्वाधिक कमायी करने वाली फिल्मों में ‘राजी’और ‘संजू’का नाम आता है. इस के बाद विक्की
कौशल ने ओटीटी प्लेटफार्म के लिए ‘लस्ट स्टोरीज’और ‘लव पर स्क्वायर फुट’में अभिनय कर ओटीटी पर भी अपने
अभिनय डंका बजाने में सफल रहे. पर फिल्म ‘ उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक’में मेजर विहान सिंह शेरगिल के किरदार को
निभाते हुए विक्की कौशल ने अपने अभिनय का जो पहलू दिखाया, उसे देखकर कई कलाकार व निर्देशक भी उनकी
प्रतिभा के कायल हो गए. इसी फिल्म ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया और फिल्म ने बॉक्स
ऑफिस पर अनुमानित 342 करोड़ की कमाई की. फिर ओटीटी पर आयी ‘सरदार उधम’में उनके अभिनय का एक अलग
पहलू सामने आया. इस तरह विक्की कौशल ने यह साबित कर दिया है कि उन्हे शीर्ष अभिनेता के रूप में पहचाना जाना
चाहिए. हकीकत यह है कि कम समय में विक्की कौशल ने अपने समकालीन कलाकारों को काफी पीछे छोड़ दिया है. इन
दिनों वह शशांक खेतान के निर्देशन में बनी फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’ में गोविंदा वाघमारे के किरदार को निभाकर
चर्चा में हैं. यह फिल्म 16 दिसंबर से ओटीटी प्लेटफार्म ‘डिज्नी हाट स्टार’पर स्ट्रीम होगी.
जब मैं अभिनय जगत में संघर्ष कर रहा था, तब भी और आज भी यह सही लग रहा है. यदि इंजीनियरिंग के बाद नौकरी
कर रहा होता, तो यही होता कि अरे यार मंडे है, नौकरी पर जाना ही पड़ेगा. यह मुझ अपनी यहां की जिंदगी में लगता
नहीं है. यहां संडे या मंडे है ही नही. कई बार हम सटरडे व संडे काम करते हैं तथा मंडे से फ्रायडे तक छुट्टी होती है. जिस
दिन सेट पर रहता हू, ख़ुशी होती है. खुषी देने वाला जब काम हम कर रहे होते हैं, तो थकावट का अहसास नहीं
होता. शारीरिक थकान होती है, लगातार ग्यारह दिन काम करने के बाद लगता है कि एक दिन की छुट्टी मिल जाए, तो
नींद पूरी हो जाती. पर बारहवें दिन फिर लगता है कि चलो काम पर चला जाए. सेट पर पहुंचा जाए. कुछ चुनौतीपूर्ण
काम कर लिया जाए. तो काम का नेचर ही कुछ ऐसा है. मुझे लगता है कि जिंदगी में जो कुछ होता है, अच्छा ही होता
है. इंजीनियरिंग करने के बाद अच्छी नौकरी मिली थी. अब नौकरी छोड़कर यह संघर्ष कर रहा था, तब लगता था कि
नौकरी छोड़कर रेल गाडी व बस में धक्का खा रहा हूं, पता ही नही लग रहा कि कब काम मिलेगा? मिलेगा भी या
नहीं..? यहां यह भी नहीं था कि हर माह तनख्वाह का चेक आ जाएगा. यहां तो हर फिल्म में काम करने के अलग पैसे
मिलते है. कहीं कोई सुरक्षा नही थी. पर अब जब गाड़ी पटरी पर आ रही है, तो लगता है कि हां सब कुछ ठीक चल रहा
है.
पर आपने अपने पिता जी को इसी इंडस्ट्री मतलब हिंदी में काम करते हुए देखा था,तो इस इंडस्ट्री की कार्यषैली से थोड़ा बहुत
परिचित तो रहे होंगे?
जी हां! तो हमें पता था कि यहां पर सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं. हमें यह भी पता था कि यहां जरुरी नही कि आपको
कभी छुट्टी मिले या यह भी जरुरी नहीं कि हर माह आपके पास काम हो और यह भी जरुरी नही कि हर माह तनख्वाह
मिले ही मिले. शनीवार व रवीवार की छुट्टी हो. परिवार के लिए अलग से समय निकाल सको. मैने बचपन में देखा था
कि त्यौहार है, पर पापा शूटिंग के लिए बाहर गए हुए हैं. मम्मी ने ‘करवा चैथ’का व्रत रखा है, पर पापा तो शूटिंग में व्यस्त
थे. और हम कुछ नहीं कर सकते थे. तो हमने यह सब देखा था. पर मैं यह भी जानता था कि इंजीनियरिंग की अच्छी पढ़ाई
करने की वजह से मैं किसी आफिस में पहुँच तो जाउंगा, पर मैं जिंदगी जी नहीं पाउंगा. मुझे ऐसा काम करना था, जहां
घुटन न हो. दूसरी बात मैं बचपन से स्टेज पर सक्रिय था, तो मुझे अपने आपको वह खुशी भी देनी थी. तो मैं वह काम
करना चाहता था, जहां संघर्ष करते हुए थकान का अहसास न हो. दिल को खुषी मिले. दूसरी बात इंजीनियरिंग की नौकरी
में वह रचनात्मकता नहीं होती, जो इस क्षेत्र में है. इसलिए इस क्षेत्र में संघर्ष करते हुए भी खुषी का अहसास होता है.
फिल्म सौ करोड़ कमा ले या दो सौ करोड़ कमा ले, वह खुशी अलग है. पर जिस दिन हम कोई किरदार निभा रहे होते हैं
और सच्चा इमोशन निकल जाए, वह जो सच्चाई कलाकार के तौर पर हम अहसास करते हैं, निर्देशक को भी पता चलता है
और आपको पता चलता है कि यह छप गया है. वह फिल्म दर्शकों तक जब पहुंचेगी, वह पहुंचेगी, पर उस दिन की जो
खुशी होती है, उसे हम शब्दों में बयां नहीं कर सकते. उस दिन, दिन भर शूटिंग कर थके हुए गाड़ी में बैठकर घर लौट रहे
होते है, तब मन मुस्कुरा रहा होता है कि आज मैं सेट पर दूसरा इंसान था और उस इंसान के इमोशन की सच्चाई को छू
कर आ रहा हॅं, क्रिएटिब एनर्जी की जो खुशी होती है, वह अलग खुशी देता है. इसकी कहीं कोई कोडिंग नहीं होती. कम्प्यूटर पर होता है कि हमने यह सब करके कोडिंग कर दिया, तो कम्प्यूटर अपने आप परिणाम दे देगा. जिंदगी में ऐसा नही होता.यहा पर हम जो करते हैं, उसकी सीमाएं नही है. हमने जो अच्छा कर दिया, उससे भी अच्छा हो सकता है. कोई भी कलाकार या निर्देशक दावा नहीं कर सकता कि इस किरदार को इससे बेहतर नहीं निभाया जा सकता था. तो यहां हम खुद अपने आपको पुश करते हैं कि कुछ और बेहतर करते हैं… कुछ और बेहतर करते हैं…इसका मजा ही कुछ और है...
फिल्म ‘गोविंदा नाम मेरा’’ से जुड़ने की कोई खास वजह ?
‘उरीः द सर्जिकल स्ट्इक’और ‘सरदार उधम सिंह’के बाद मैं कुछ हल्का फुल्का निभाने की सोच रहा था. मैं सेाच
रहा था कि अब कॉमेडी या कुछ रंगीन सा करने का अवसर मिल जाए. जिसमे रोना धोना न हो. पर मुझे पता नही था कि ऐसा कुछ मेरे पास आएगा या नहीं...ऐसे वक्त में एक दिन षषांक ने मुझे बुलाया और बताया कि वह कुछ ऐसा लिख रहे हैं, जिस पर बनी फिल्म देखते हुए दो घंटे के लिए दर्षक अपने टेंषन को भूल जाएगा. मैने कहा कि यह विचार तो बहुत अच्छा है. षषांक ने लिखने के बाद मुझे सुनाने का वादा किया. लेखन पूरा होने के बाद जब उन्होने मुझे सुनाया तो मुझे कमाल की स्क्रिप्ट लगी. कन्फ्यूजन से जो ह्यूमर पैदा होता है, उसे दर्षक की हैसियत से भी देखने में मजा आता है. मैने तुरंत हामी भर दी.
फिल्म ‘गोविंदा नाम मेरा’ को लेकर क्या कहेंगें?
फिल्म ‘गोविंदा नाम मेरा’में अलग अलग तरह के किरदारों की भरमार है. यह सारे किरदार किस तरह एक दूसरे से भिड़ते हैं और बीच में मर्डर हो जाता है. फिर हास्य के साथ क्या खिचड़ी पकती है, वही इस फिल्मकी कहानी है. इसमें कुछ
भी गंभीर से लेने वाली बात नही है. इसमें न सीख है और न ही सबक है.
आपने राज कुमार हिरानी व सुजीत सहित कई दिग्गज निर्देषकों के साथ काम किया है.अब आपने षषांक खेतान के
निर्देषन में काम किया है. आपने षषांक खेतान में क्या खास बात पायी?
वह हमेषा सकारात्मक फिल्में बनाते हैं. वह हमेषा ठंडे दिमाग से काम करना पसंद करते है. वह सेट पर भी षषांक रहकर ही काम करते हैं. वह कभी भी टेंषन में नही आते. षषांक का सिनेमा का ग्रामर बहुत सरल है. वह कॉम्प्लिकेटेड नही है. यह बात मेरे लिए नई थी. राज कुमार हिरानी या राजू सर के किरदार में लेअर काफी होते हैं. उनके किरदार जो बात कर रहे होते है उसके अंदर भी बात हो रही होती है. उनकी सोच यह है कि हमें सीख नही देना, सिर्फ मनोरंजन करना है.
फिल्म में किआरा अडवाणी संग आपके स्टीमी व बोल्ड दृष्यों की काफी चर्चा है?
फिल्म में किआरा अडवाणी ने गोविंदा वाघमारे की प्रेमिका का किरदार निभाया है. दोनों के रिष्ते हैं. दोनो डांसर हैं और
जीषू डांस अकादमी चलाते हैं. दोनों को मषहूर कोरियोग्राफर बनना है. दोनों के बड़े बड़े सपने हैं. टेंडर लव स्टोरी है, पर
स्टीमी सीन तो नही है. दोनों किरदारों के माध्यम से लव स्टोरी आती है. मुझे किआरा के साथ काम करके मजा आया. हमने पहले एक साथ ‘लस्ट स्टोरीज’की थी. अब हमने दूसरी बार इस फिल्म में काम किया है. वह वंडरफुल कलाकार है. मुझे लगता है कि वह हर शैली में अच्छा अभिनय करने में माहिर है. वह भी लंबे समय से गंभीर किरदार निभा रही थी, तो वह भी कुछ हल्का फुल्का करना चाहती थीं.
आप ‘उरीः द सर्जिकल स्ट्इक’कर चुके हैं, तो क्या ‘सैम’ करना आसान होगा?
आसान तो कुछ नही होता. कलाकार के तौर पर हमारा फोकष तो इंसान पर ही होता है. जब इंसान अलग होता है, तो मेरे लिए सब कुछ अलग हो जाता है.सैम को मैं जितना जान पा रहा हॅू, मुझे लगता है कि आजकल ऐसे इंसान पैदा ही नहीं होते. उनका एकदम अलग स्वभाव, अलग अंदाज था. तो वह जीने में बड़ा मजा आ रहा है.